सं.स्त्री.
1.राज्जा--दरबार का एक उच्च पद, समूह या स्थान, जो राज्य के प्रमुख--प्रमुख सरदारों या सामन्तों को दिया जाता था। ये राज्य के स्तम्भ माने जाते थे और प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य में इनकी सहमति होनी आवश्यक थी।
- उदा.--1..आठ मिसल उमराव, सूर आविया सकाजा। दुज मंत्री कवि दुझल, मिळे दरगह महाराजा।--सू.प्र.
- उदा.--2..जयसिंहजी ऊपर बखतसिंह जी भूहर बळ किया, मिसल सारी सांमल कीवी।--मारवाड़रा अमरावां री वारता
- उदा.--3..तारासिंहजी भेलौ करणे राखिया बीजा बीदावत तीनूं मिसलां केसवदासोत, जेतस्योत खंगारोत मनोहर दासोत..........।--माड़वाड़ रा अमरावां री वारता
- उदा.--4..तांम बुलाए साह तिण, आठूं मिसल अभंग। जोध रिणमल जोरावर, सेनंग आद दुरंग।--रा.रू.
- उदा.--5..अट्ठों दिकपालन सम असंक, निरखियें अट्ठ मिसलन निसंक। ईसाग्याबत्ती अचळ अग्ध, मारवा राव मुरवर महग्ध।--ऊ.का.
2.राज--सभा या दरबार में बैठने का निश्चित स्थान।
- उदा.--सो नाहर राज देसकाळ विचारि दिल्ली आय इण रीति अनंगपाळ नूं प्रसन्न करण सभा में मिसल माफिक बैठौ--वं.भा.
3.पंक्ति, कतार, श्रेणी।
- उदा.--मेछां ह दा मुलक में, जो मावड़ियो जाय। महवमबां री मिसल में, किल सिरदार कहाय।--बां.दा.
4.वर्ग, समूह।
- उदा.--लारली भौळावण भाई देवा नै दीधी। सखरै सावणै चाल्या, तिके दर--मजले दिली पोहता। सखरी ठोड़ आपरी मिसल मांहै डेरा कीधा।--जखड़ामुखड़ा भाटी री बात
5.सिक्खों के विभिन्न नायकों की अधीनता में स्वतन्त्र होने वाले विभिन्न समूह।
6.सभा, समाज। वि.--समान, तुल्य, सददृश। क्रि.वि.--तरफ, और।
रू.भे.
मसल, मसलि, मसल्ल, मिसलत, मिस्ल, मीसल,
विशेष विवरण:-यह अन्यन्त महत्व पूर्ण पद स्थान था। प्रत्येक दरबार में ऐसे कुछ स्थान निश्चित किये हुऐ थे, यथा--जोधपुर में आठ, बीकानेर में चार इत्यादि। ये स्थान राज्य के प्रमुख--प्रमुख सरदारों को दिये जाते थे, जो कि उस राज्य के विशिष्ट वंश, वर्ग या समूह के प्रतिनिधि होते थे। जैसे--जोधपुर में आठ स्थानों में चार जोधाजी के वंशजों को दिये जाते थे और चार रिणमलजी के वंशजों को दिये जाते थे। जोधापुर में यह व्यवस्था महाराज शूरसिंह जी के राज्य काल में भाटी गौविन्ददास द्वारा की गई और राव रिणमल्लजी के वंशजों के लिए दांई तरफ व जोधाजी के वंशजों के कलये बांई तरफ का स्थान निश्चित किया गया। पहले मारवाड़ में राजाओं और जागीरदारों के बीच भाई--बिरादरी का बर्ताव चलता थापरन्तु मिसलें बनने के बाद इनमें स्वामी--सेवकों का संबंध हो गया। जिस वंश को यह मिसल दी गाई थी वह उसी वंश में चलती रही। एक वंश से हटा कर दूसरे को मिसल नहीं दी जाती थी। इसी प्रकार बीकानेर के चार स्थांनों में से दो स्थान राज्य परिवार के लिये एक स्थान कांन्धलजी के वंशजों के लिए व एक बीदावतों के लिए था। इत्यादि। दरबार में बैठने के लिए ये स्थान निश्चित होते थे, तदनुसार ये सरदार राजा के दायें--बायें पंक्ति बद्ध बैठा करते थे। मिसल बहुत यक्तिशाली होती थी, यहां तक कि पूरी मिसल एक मत होकर राजा को भी बदल सकती थी। मिसल का रूप एक प्रकार का मंत्रि--मण्डल ही था। राज्य के महत्वपूर्ण कार्यो में इसकी सहमति आवश्यक थी।