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मूंज  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.मुञ्ज:
1.सरकंडों की ऊपरी छाल जिसको भिगो कर व कूट कर चार पाई बुनने के लिए रस्सी बनाई जाती है।
2.इस छाल की बुनी हुई रस्सी।
  • उदा.--करणै नै बचबचा' र पकड़ लियौ, बूकिया झाल लिया अर मूंज रा बंध दे परा' थांणै में सूंप दीनौ।--दरदोख
3.धारा नगरी का परमार राजा मुंज।
  • उदा.--स्रीदसरथ दसरथ सुतन, पीथल मूंज पंवार कुंण कुंण डहकांणां नही, बस चुगलां वापार।--बां.दा.
रू.भे.
मउज, मऊज, मुंज, मूंझ, मूज, मूझ,
4.देखो 'मुझ' (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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