सं.पु.
सं.मेरु
1.अस्ताचल।
- उदा.--सो दिन मेर पेसतां जोइयां री जमीं छोड खरळां री सींव बड़िया।--कुंवरसी सांखसा री बारता
2.सीमा, सरहद।
- उदा.--इत उणियारौ टूंक उत, मेर मिळत दहुं राज। तदपि असुर को चित बध्यौ, फिर धर दब्बन काज।--ला.रा.
3.राजस्थान की एक पहाड़ी जाति या इस जाति का व्यक्ति।
- उदा.--1..मैंणौ पेणूं मेर बावरा बिलळा बैता। भाळौ थोरी भीळ, रात रा मांगै रैता।--ऊ.का.
- उदा.--3..भील न कूं भलावियौ, नहीं मेरां मीणांह। तोनूं रांण भळावियी, सोहड़ा सुकलीणांह।--बां.दा.
4.डिंगल के वेलिया सांणोर छंद का एक भेद विशेष, जिसके प्रथम द्वाले में 8 लधु, 28 गुरु कुल 64 मात्राएं तथा इसी क्रम से शेष द्वालों में 8 लधु, 27 गुरु कुल 62 मात्राएं होती है।
5.देखो 'मेरू' (रू.भे.)
- उदा.--1..छबीलौ घणौं खास आवास छाजै, लखै घाट स्वाराट रौ पाटलाजै। निराळौ फबै फूटरौ झुंठ नांही, मनों मेर रौ कूट बैकूंट मांही।--मे.म.
- उदा.--2..कांमी नर कै कांम कौ, हरीया रतीयेक सुख। यांतै अधिकौ ऊपजै, मेर प्रवांणै दुख।--स्री हरिरांमदासजी महाराज
- उदा.--3..दादू माया फोड़ै नैन दो, रांम न सूझै काळ। साधु पुकारै मेर चढ, देख अग्नि की झाळ।--दादूबांणी
- उदा.--4..क्या फेरै कर काठ की, मन की माळा फेर। जनहरीया माळा फिरै, बिनां विचेरण मेर।--स्री हरिरांमदासजी महाराज
- उदा.--5..सबळ सिंध 'प्राग' का सो मेर व्रत धारी। आसकरन भाई जंग काच की सी झारी।--रा.रू.