सं.पु.
सं.
1.एक पुराणेक्त पर्वत जो स्वर्ण का माना गया है।
- उदा.--1..अभ्र मांहि जिम ध्र अडिग, सेसनाग पाताल। म्रत्युलोक मां मेरु जिम तिम ए वरण विसाल।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
- उदा.--2..हेता तउ महेस्वर तणी, स्रस्टि ब्रह्मातणी, प्रज्ञा व्रहस्पति तणी, प्रतिज्ञा फरुसरांम तणी, मरयादा समुद्र तणी, दांन बलि तणउं अवस्टंम मेरु तणउ।--व.स.
2.जप करने वाली माला के बीच का बड़ा मणिया।
- उदा.--सैंकड़ां सूरां नूं साथी करि महा रुद्र री माळा मैं आरा मुंड रौ मेरु चढाइ रुंड थकौ भी धारा मैं तिलतिल पळचरां री पांती पुदगळन राखि इस्टलोक पूगियौ।--वं.भा.
4.छन्द शास्त्र में एक गणना--पद्दति जिसके अनुसा किसी छंद के लधु--गुरु ज्ञात किये जाते हैं।
5.छप्पय छन्द का 40 वां भेद, जिसमें 31 गुरू तथा90 लघु के अनुसार 121 वर्ण व 152 मात्राएं होती हैं।
2.देखो 'मेरुदंड' (रू.भे.)