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मोट  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.बड़प्पन, बड़ाई।
  • उदा.--1..बोलां में ओछा विदर, मोला में नह मोट। पोळां में 'परताप' रै, गोलां वाळौ गोट।--ऊ.का.
  • उदा.--2..नान्हौ कह्यां न नांनडौ, मोटौ कह्यां न मोट। हरिया हरि जांणै जिसौ, वाकी गहीयै ओट।--स्त्री हरिरांमदासजी महाराज
2.गर्व घमंड, अभिमान।
  • उदा.--रैत रिछपाळ और दीनन दयाल देख्यौ। मोट महिपाळपन मन में मान्यौ नहीं।--ऊ.का.
3.राठोड़ों की एक उपशाखा। (बां.दा.ख्यात)
4.कूए से पानी निकालने का चड़स।
रू.भे.
मोटइ, मोठ।
5.देखो 'मोटौ' (मह., रू.भे.)
  • उदा.--तीन लोक ता वीच मैं, अकल काळ की चोट। जनहरीया जोय मरिसी, छोटा गिनै न मोट।--स्त्री.हरिरांमदासजी महाराज


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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