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रंच  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.न्यंच, प्रा.णंच
1.अत्यल्प, अल्प, थोड़ा, किंचित, तनिक।
  • उदा.--1..किल कंचन कांमनि त्याग करै, धन संच प्रपंच न रंच धरै।--ऊ.का.
  • उदा.--2..बडौ कठण पण पिता कियौ, कोई रंच न कियौ बिचार। धनुख चढौ कै मत चढौ, म्हारौ रांम भंवर भरतार।--गी.रां.
  • उदा.--3..पय कर मीठौ पाक, जो अमरित सींचीजिये। उर कडवाई आक रंच न मूकै राजिया।--कृपाराम बारहठ (खिड़िया)
  • उदा.--4..हठ इंद्री निग्रह करै, जोग जप तप ग्यांन। हरीया सहजां सबद का, रंच न पावै ध्यांन।--अनुभववांणी
2.तुच्छ, न्यून। सं.स्त्री.--
1.पार्वती, दुर्गा देवी। (क.कु.बो.)
रू.भे.
रंचक।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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