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रघुरज, रघुराइ, रघुराई, रघुराज, रघुराजा, रघुराय, रघुराया  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.रघु+राज
1.श्री रामचन्द्र।
  • उदा.--1..सभा भूप दसरथ सुत, रूप इसौ रघुरज।--रांमरासौ,
  • उदा.--2..राज मौहरि उपति रघुराई। भिड़ू जेण विध लखमण भाई।--सू.प्र.
  • उदा.--3..अस्तुति कर सब देव सिधाया, जग में जय-जय धुन छाई। आनंद भयौ भवन सारां में, राज विराज्या रघुराई।--गी.रां.
  • उदा.--4..कळ सत 'कंत' जिण जगणंत। रट रघुराय, थिर सुख थाय।--र.ज.प्र.
  • उदा.--5..राज तणी इच्छा रघुराया, अखिल चराचर जीव उपाया।--ह.र.
2.--ईश्वर, परमेश्वर।
3.विष्णु का नामान्तर।
रू.भे.
रुघराई, रुघराउ, रुघराज, रुघराजा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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