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रज  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.रजस्‌
1.धूल, बालू रेत, गर्द। (अ.मा., डिं.को., ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..गाढी गयणांगण रज ले गरणाटा। सांवण सूकौ गौ देतौ सरणाटा।--ऊ.का.
  • उदा.--2..औरां कुं सकजा गिनै, आपा होय निकज। हरीया हरिजन जांणीयै, जिसी राह की रज।--अनुभववांणी
2.पृथ्वी, भूमि।
3.रात, रात्रि।
  • उदा.--रज पळटै दिन ही घटै, सूर पळट्टै छांह। सूरां हंदा बोलिया, वैण पळट्टे नांह।--राव रिणमल री वात
4.गौरव, प्रतिष्ठा, इज्जात, मर्यादा।
  • उदा.--1..कमधज भुज निमज सकज सु सुपह कज। राखै रज रिणतूर रुडै।--गु.रू.बं.
  • उदा.--2..आपरी राख रज सुरग वसियौ 'अंनौ'। राज विध भोगवै महाराजा।--अनोपसिंह रौ गीत
रू.भे.
रंज, रंजि, रंजी, रजि, रजी, रज्जा, रज्जी, रज्जु, रज्जू, रय।
5.कीर्ति, यश।
  • उदा.--लोयण लाज लाज रा लंगर, भारी साज राज रा भाव। सत रा औटभ रज रा सारण, रज रा कोट तपौ महाराव।--आईदांन पाल्हावत
6.चांदी, रजत।
  • उदा.--सुभ सुभड़ मंत्रि कति लोक सब्ब। दुति करति नजर घण रज दरब्ब।--सू.प्र.
7.जल, पानी।
8.बादल, मेघ।
9.वाष्प, कोहरा।
10.स्तन पाई मादा प्राणियों के योनि द्वार से प्रतिमास निकलने वाला रक्त जो गर्भकाल में बंद रहता है। आर्तव। (अनेका.)
  • उदा.--तरुवर साखा मूळ बिन, रज वीरज रहिता। अजर अमर अतीत फळ, सौ दादू गहिता।--दादूबांणी
11.पुषपरज, मकरंद, पराग। (डिं.को.)
12.केसर।
13.धार्मिक क्षेत्र में, प्रकृति के तीन गुणों में से दूसरा गुण, रजोगुण। (सांख्य)
  • उदा.--1..सत रज तम रस पंच रहत रस, ता रस सूं मन लागा। यम्रत जरै प्रांण रस पीवै, भरम गया भै भागा।--ह.पु.वां.,
  • उदा.--2..सतगुण अधिक सोई है ग्यांना, रज तम दोई आग्यांना। रज तम गुण का वे प्रचंडा, सत्वगुण ग्यांन नसाया।--स्री सुखरांम जी महाराज
14.आकाश, गगन।
15.धूल का कण, जर्रा।
  • उदा.--1..तौ पण प्रताप मेछां तणौ, अतस दाप बाधौ अकस। राव रांण कांण लेखै न रज, एक पांण थंभै अरस।--रा.रू.
  • उदा.--2..रण कर रज रज हुए, रिव ढंकै रज हूंत। रज जेती धर ना दिये, रज रज व्है रजपूत।--नाथूरांम महियारियौ
16.अंधकार।
17.मानसिक अन्धकार, अज्ञान।
18.मेल।
19.पाप। (अनेका.)
20.भुवन-लोक।
21.कांति, आभा, नूर।
  • उदा.--लोयण लागणिया तणिया लजवाळा। कोयण काजळिया रळिया रज वाळा।--ऊ.का.
22.शौर्य, पराक्रम, वीरता।
  • उदा.--मुख नहं नूर उछाह मन, बळ नहं कंध विसेख। मावड़िया लोयण मही, रज हंदी नहं रेख।--बां.दा.
23.रौब, प्रभाव।
24.क्षत्रित्व, रजपूती। (अनेका.)
  • उदा.--पड़पंच करै न लाज जिकां पिंड, खोटौ लाभ कुलाभ खरौ। रज बेचवा न आयौ रांणी, हाटां बीच 'हमीर' हरौ।--प्रथ्वीराज राठौड़
25.क्षत्रिय, रजपूत।
  • उदा.--चेतै नह चारण चव्यां, रज वौ नह पिण रज़़्ज। खाय खपै खळ खूंसड़ा, भोम जाय जिण भज़़्ज।--रेवतसिंह भाटी
26.राज्य सत्ता।
  • उदा.--1..ताहरां पतिसाह जी हिंदुवां कांनी देखि अर कहियौ जु राठौड़ छै सु तौ रज रा धणी छै। राजा छै।--द.वि.,
  • उदा.--2..उमरावां दाखी अरज, कुसळि करण रज काज। जगत अछांनी जांणणै, सो मांनी महाराज।--रा.रू.
27.टुकड़ा, खण्ड।
  • उदा.--1..निहसै खळां 'नवल्ल' रौ, अग्गै दळां दुझाल। हिच पड़ियौ रज रज हुवै, सांदू सूरज माल।--रा.रू.
28.वीर्य की बूंद या कतरा।
  • उदा.--तरुवर साखा मूळ बिन, रज वीरज रहिता। अजर अमर अतीत फळ, सौ दादू गहिता।--दादूबांणी
29.एक सप्तर्षि, जो वसिष्ठ एवं ऊर्जा के पुत्रों में से एक था।
30.धर नामक वसु का एक पुत्र।
31.विरज राजा का पुत्र एक राजा।
32.स्कंद का एक सैनिक।
रू.भे.
रज्जा।
सं.पु.--
सं.पु.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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