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रसोई  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.रसवती
1.भोजन के रूप में बनने वाली खाद्य सामग्री, भोजन, खाना।
  • उदा.--1..ठाकर सगळी बातां रौ हंकारौ भर्‌यौ, गुलाब री मां धूप--दीप कर्‌यौ। रसोई वणाई, चूरमौ चूर्‌यौ अर भूत देवता री जगां लेजा'र चढायौ।--दसदोख,
  • उदा.--2..अठी बाप--बेटा रौ संपाड़ौ सपूरण व्हियौ अर उठी सेठांणी री रसोई। गुळ रौ झरझरतौ मंगळीक सीरौ बणायौ। खीर बणाई। मालपूवा काढ्‌या। पापड़--खीच्या तळ्‌या। बाजौट्‌या ढाळ थाळ पुरसिया।--फुलवाड़ी
  • उदा.--3..संपत रौ नह सोच सोच नह सरधा सोई। स्यांन गई नह सोच, सोच नह ध्यांन रसोई।--ऊ.का.
2.वह कक्ष जहां भोजन बनाया जाता है, रसोईघर, पाकशाला।
  • उदा.--1..बेटौ पांणी पीवण सारू गियौ तौ परिंडौ रीतौ। रसोई में गियौ तौ चूल्हा में वासदी री तिणग ई नीं।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..कोई सुणियौ तौ माजना में कित्ती धूड़ घालैला--महाजन री रसोई में लोई रा छांटा। थांनै कीकर नींद आवै अर कीकर भूख लागै।--फुलवाड़ी
3.देव मंदिर, मठ या किसी ब्राह्मण को दी जाने वाली, आटा दाल, घृत आदि भोजन सामग्री।
  • उदा.--ताहरां बांभण रसोई मांगै। द्यौ। ताहरां कहै माता, रसोई देसुं।--प्रतापसिंघ म्होकमसिंघ री वात
रू.भे.
रसोइ, रसोय। अल्पा.रओड़ी, रसोड़ी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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