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राकां, राका  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.राका
1.पूर्णिमा की रात्रि, पूनम की रात।
  • उदा.--1..उदियागर उगियौ, इंदु राकां अविरचां। रंग कुरंग विरहणी, पाव वाधी अरचां।--कील्हजी चारण,
  • उदा.--2..तौ केसपास छै सौइ राति भई। राका कहतां पूरणिमा ताकौ ईस चंद्रमा सोई मुख हुऔ।--वेलि.टी.
  • उदा.--3..सजळ, सलहर, सपत्र, सतप, सुरस्रंग, ससीतळ। प्रात, पुनिम मधु जेठ व्रखा, विग्रह राका मिळ।--र.ज.प्र.
2.पूर्णिमा की तिथि, एक पर्व-दिन।
  • उदा.--1..उच्छब वधै अजोधिया, प्रभु दरसण परमांणि। चंद्र देखि सांमंद्र चढै, जळ राका निस जांणि।--सू.प्र.
  • उदा.--2..करि ठांम ठांम वंदण कळस, सरस गांम निज गांम सुख। व्है नजर नरां सांमंद हरख, राका निस सांमंद रुख।--सू.प्र.
3.पूर्णिमा की अधिष्ठात्री देवी।
4.रात्रि, रात।
5.वह युवती जो पहले-पहल रजस्वला हुई हो।
6.खुजली रोग।
7.खर तथा सूर्पनखा की माता।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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