HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

राजस  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.राज्य, हुकूमत, शासन, सत्ता।
  • उदा.--1..विविध धांम पुर ग्रांम बसां है, माली राजस पूरब माहै । सेतरांम सकबंध नरेसर इळ (ठा) लग राजस पूरब अंतर।--रा.रू.
  • उदा.--2..एक बरस रहि आप री राजस बांध फेर आप बादसाह री हजूर गयौ।--ठा.जैतसी री वारता,
  • उदा.--3..सो एक दिन जंगळ रा गांवा रौ एक रजपूत पल्हू गांव परणियौ थौ सो सासरै गयौ। उठै खीचियां रा गांव अर राजस खरळां री।--कुंवरसी सांखला री वारता
  • उदा.--4..चित समंद थांनिक 'चौंडरे'। कमधज्जा राजस इम करै।--सू.प्र.
2.राजधानी।
  • उदा.--अग्रज हूं तो सेव अभ्यासी, पारकेत सिव तणौ उपासी। इण कजि मूझ नवौ पुर आपौ, सिव संथान मौ राजस थापौ।--सू.प्र.
3.शासन--काल, राज्य--काल।
  • उदा.--1..व्रथा कांमां मांही समयौ राजस रौ खोइयौ तिण सूं पादसाही खोई।--नी.प्र.,
  • उदा.--2..रही स्वछंद रैत तव राजस, सुभ अमंद सुखियारी। आणंद कंद एक दम उठग्यौ, 'तखत' नंद अवतारी--ऊ.का.
4.राजसी ठाट--बाट से किया जाने वाला जीवनयापन।
  • उदा.--1..सो इण भांत जलाल गहरी मौज आणंद सूं रहै। फूलां री तिवारा दारू पी'र लाल रहे। दिन रात सारौ साथ मतवाळौ छकियौ रहै। सो इण भांत जलाल राजस करै।--जलाल बूबना री बात,
  • उदा.--2..अड़धू लाग रैया, बंब बाजै ही। घर रा लोग राजस करै हा। कमाई में सफै अर बरकत ही--दसदोख,
  • उदा.--3..वातां कर दिन पोहर चढतां भुंजाई रावजी कनै जीमै। दरबार रौ कांम कर दोपोहरै भरमल रै जाय पौढे। इण तरै राजस सुख करै।--कुंवरसी सांखला री वारता
5.सुख भोग, भोग--विलास।
  • उदा.--सावण आयौ सायबा, बांधौ पाग सुरंग। महल बैठ राजस करौ.लीला चरै तुरंग।--अज्ञात
6.काम क्रीड़ा, मैथुन।
  • उदा.--मंगळ वारै मंड कर, परणी आंणे कंथ। सेजा चढ राजस किया, पूरै मन सूं कंथ।--अज्ञात
7.राज्य (क्षेत्र की दृष्टि से)
  • उदा.--नाव तिरै नहं नीर में, निबळां नावड़ियांह। राजस नंह साबत रहै, मिनखौ मावड़ियांह।--बां.दा.
8.राजा, नृप।
  • उदा.--1..प्रण कियां पछै पाछौ नहीं फिरणौ, राजस रौ मोटौ गुण हठ नूं जांणजै।--नी.प्र.,
  • उदा.--2..वर मोनूं प्रापत नहीं सुण सांची दीवांण। राजस संगति हूं करी तींसू मन पहचांण।--नापै सांखलै री वारता
9.राजत्व।
10.राजसभा, राजदरबार।
11.रजोगुण।
  • उदा.--1..महतत्व थकी अहंकार नीपनौ। अहंकार त्रिहुं प्रकारे कहियै। एक सात्विक। बीजौ राजस। तीजौ तांमस। सात्विक अहंकार थी मनु अरु देवता इंद्रियाँ का अधिस्टाता नीपना।--द.वि.,
  • उदा.--2..पांणी ल्यावै डोरि करि, हाथे भात पचाय। राजस ताँमस रचि रह्यो, सातिग नावै दाय।--अनुभववांणी
  • उदा.--3..दादू राजस कर उत्पत्ति करै, सात्विक कर प्रतिपाल। तांमस कर परळै करै, निरगुण कौतिक हार।--दादूबांणी
12.रजोगुण से उत्पन्न, रजोगुण सम्बन्धी, रजोगुणी।
13.आवेश।
14.क्रोश।
रू.भे.
राजस्स, राजिस्स।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची