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रुचि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.एक प्रजापति जो ब्रह्मा के मन से उत्पन्न हुआ था। इसकी पत्नी का नाम आकूति था। सं.स्त्री.[सं.रुचि:]
2.किरण। (अ.मा., नां.मा., ह.नां.मा.)
3.शोभा, सुन्दरता।
4.आभा, प्रकाश, दीप्ति, चमक।
  • उदा.--बपु स्यांम सुन्दर मेघ रुचि, फबि तड़िप पीत बटंबरं। सुज बांम चाप निखंग कटि, तट दच्छ कर भ्रांमत सरं।--र.ज.प्र.
5.अभिलाषा, इच्छा, कामना।
  • उदा.--चख चंचळ, मन अचळ कमळ चख भुहां अळीअळ। तन ऊजळ पति रत्त, रूप भरता रुचि मंझळ।--गु.रू.बं.
7.अलकापुरी की एक अप्सरा का नाम।
8.अप्सरा।
9.पसंदगी, अभिरुचि।
  • उदा.--नहीं मोती माळा नहि न छक हाला सुचि नहीं। नहीं नारी प्यारी वचन, छिंदगारी रुचि नहीं।--ऊ.का.
  • उदा.--मोर मुकुट वन माळ, माळ तुळसी तव मंजर। रुचि कुंडळ कल रतन, तिलक मंजुल पितांबर।--रा.रू.
रू.भे.
रुइ, रुई, रुच।
वि.
मनोहर, सुन्दर।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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