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रूपक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.रूपकम्‌
1.वह काव्य या ग्रन्थ जिसमें किसी महान्‌ योद्धा का चरित्र चित्रण हो।
  • उदा.--1..अथ राजराजेस्वर महाराजाधिराज स्रीछत्रपति प्रिथिपति रघुवंससिरताज महाराज स्री स्री स्री स्री स्री अभैसिंघ जी रौ रूपक सूरजप्रकास कविया करणीदांन विजैरांमोत रौ कहियौ।--सू.प्र.
  • उदा.--2..रुघवंसी राठौड़ हर, तेरह साख कमंध। विमर सकत्ती वरणवां, बंधे रूपक बंध।--गु.रू.बं.
2.काव्य, कविता।
  • उदा.--कहै 'द्वारौ' धधवाड़, असुर असि धकै चढाऊं। तिसी झाट रूपकां, जिसी खग झाट बजाऊं।--सू.प्र.
  • उदा.--2..तिकौ पांवड़ै पांवड़ै अस्वमेध रौ फळ पावां। चोख तीखरी वातां कांम आयां पछै रूपकां मांहै गवावां अरु मुकत जावां ही जावां।--प्रतापसिंघ म्होकमसिंघ री वात
3.डिंगळ गीत (छंद) विशेष जिसकी संख्या 84 मानी जाती है।
  • उदा.--1..'स्रूप' कवित नरहरि छप्पै, सूरजमल के छंद। गहरी झमक 'गणेसरी', रूपक हुकमीचंद।--अज्ञात
  • उदा.--2..मन महरांण गभीर मत, गुरआत सुरांगुर। चौरासी रूपक समझ, खट भाख बहोत्तर।--पाबूदांन आसियौ
4.वर्णिक वृत या मात्रिक छंद।
  • उदा.--1..पाए एकणि रूप पणि, चवदह सहस चमाळ। सगण च्यारि लघु दोंइ सुजि, रूपक नांम रसाळ--ल.पिं.,
  • उदा.--2..पनरह मात्रां जगण पर, एक चरण इहिनांण। चावा रूपक चौपइ, भणि, लखपत्ति कुळ भांण।--ल.पिं.
5.कीर्ति, यश।
  • उदा.--प्रविता पारब्बती, कनां कमळा सावंत्री। जमना गंगा जिसी चन्द्र-भागा सरसत्ती। 'चंद्रभांण' सधू चंद्रा वदनि, चंद्रावत सीसोदणी, रूपक चडावण रांमपुरी, इधक रूप इंद्रायणी।--गु.रू.बं.
6.प्रशंसात्मक कविता।
  • उदा.--1..अट्ठारे तैंयासियै, चेत मास नम स्यांम। रूपक 'बंक' वणावियौ, धवळ पचीसी नांम।--बां.दा.
10.दृश्य काव्य, नाटक।
  • उदा.--1..आप सबसै आगूं बीजूँजळ वाहै। दईवकै धणी और तीसरा न जांणै। अेसै गुण अनेक कवि कहां लग वखांणै। च्यार प्रकार की जुगनि सात रूपकूं के विधांन। पंच प्रकार की उगति अस्टाविधांन।--सू.प्र.
8.किसी रूप की बनाई हुई मूर्ति या प्रतिकृति।
9.चांदी का बना कंठ में धारण करने का आभूषण विशेष। [सं.रूप्यकं]
10.रुपया नामक सिक्का।
10.चाँदी।
11.साहित्य में एक प्रकार अर्थालंकार जहां उपमावाचक एवं निषेधसूचक शब्दों के बिना ही उपमेय का वर्णन किया जाता है। वि.वि.इसके सांगरूपक, अभेद रूपक तद्रूपक आदि कईं भेद हैं। महा-रूपक बांधणौ- बढ़ा चढ़ा कर आलंकारिक भाषा में वर्णन करना 12--एक पौराणिक शिव भक्त राक्षस का नाम, जिसके पुत्र का नाम संपति था। ये दोनों अन्याय द्वारा संपति उपार्जन कर, वह शिव उपासना में व्यय करते थे। इस कारण मरण के बाद शिव के मानस पुत्र वीरभद्र ने इन्हें कहा अगले जन्म में तुम चोर बनोगे, किन्तु शिव भक्ति के कारण तुम्हारा उद्धार होगा।
रू.भे.
रूपकउ, रूपग।
विशेष विवरण:-साहित्यदर्पण ने रूपक (दृश्य काव्य या नाटक) के दस भेद माने हैं।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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