सं.पु.
सं.रोष
1.कोप, क्रोध, गुस्सा। (अ.मा.)
- उदा.--1..कर प्रगट दोस खंडण करूँ, धीठ रोस मत धारज्यौ। आज रौ बखत भूँडौ अमल, बडपण राज विचारज्यौ।--ऊ.का.
- उदा.--2..कर सिलांम त्रय वार, तांम आलम्म महातप। ओप जोस असमांण, वधे किर रोस महावप।--रा.रू.
2.क्रोध जोश आदि से होने वाली नेत्र की ललाई, उबाल, उफान।
- उदा.--1..नवहत्थौ मत्थौ बडौ, रोस भटक्कै रार। औ कूंभाथळ ऊपरां, हाथळ बाहणहार।--बां.दा.
- उदा.--2..अत कोप मुख़ां, चख रोस चडै। झळ आग लगी, किर दूंग झड़ै।--रा.रू.
- उदा.--3..अपनी कबांन आलमसा हाथ दीनी, डाढी नोस हाथ दीनौ रार रोस भीनी।--रा.रू.
5.जोश, आवेग।
- उदा.--रावता रोस वाहंत रूक, इक इक्क घाव दोय दोय टूक।--गु.रू.बं.
6.फोड़ा फुन्सी आदि का जोश में आना, पीड़ा का बढना।
7.खुशी, हर्ष।
- उदा.--1..बसता हरिया बाग बिच, होती रोस हजार। वसियाऊं हीज वांकला, माढू आय मजार।--बां.दा.
8.मकान के भीतर की ओर दीवार में चारों ओर अथवा द्वार पर लगने वाला वह लंबा चौड़ा मोटा पत्थर जिसके नीचे तोडी भी लगी रहती रहती है। वि.वि.--बालकोनी प्राय: इसी को कहते हैं।
9.प्रकाश, रोशनी।
- उदा.--रात पड़्यो जद आंतरौ, भूल्यौ सारा दोस। पीळोपण मुख रौ, गयौ सूरज सागी रोस।--लू,
रू.भे.
रोख--अल्पा., रोसौ ।मह.