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रोही     (स्त्रीलिंग--रोहिणी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.रोहिन्‌
1.ऊपर चढने वाला, ऊपर की ओर जाने वाला। सं.पु.--
1.एक प्रकार का हिरन, मृग।
2.रोहिड़ा नामक वृक्ष।
3.रोहू नामक मछली।
4.रीढ़ की हड्डी।
  • उदा.--'सगतीसिंह' तरवार वाही सो प्रेमसिंह घोड़े फेरते रै लागी घोड़े रै खोगीर बढकर रोही री हाडी बैठ गयी जिण सूँ घोड़ो झुस हुय गयौ।--मारवाड़ रा अमरावां री वारता
5.वन, जंगळ।
  • उदा.--गुण औगुण जिण गांव, सुणै न कोई सांभळै। उण नगरी विच नांव, रोही आच्छी राजिया।--कृपाराम बारहठ (खिड़िया)
  • उदा.--2..इतरा में रोही मांही एक थोरी सिकार रै पगां हिरणी मुहडा आगै लियां आवै।--रामदत्त साह री वारता


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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