सं.पु.
सं.
1.किसी पदार्थ या वस्तु का वह गुण या विशेषता जिससे वह पहचाना जाय।
2.किसी व्यक्ति या प्राणी का वह गुण या विशेषता जो अन्य में न हो।
3.किसी रोग के सूचक शरीर में दिखाई देने वाले चिह्न। ज्यूं--निकाळा रा एहीज लक्षण व्है।
4.सामुद्रिक विद्या के अनुसारशरीर के किसी अंग पर दृष्टिगत शुभ या अशुभ चिह्न।
6.स्वभाव, आदत।
- उदा.--ताहरां थारा साथी कहिसी, हालौ तयार। पिण तूं हूं कहूं तेनूं साथै ल्याए। जिकौ ईयै लक्षणे हुवै, तीयै नूं ल्याए।--कांवळै जोईयौ नै तीडी खरळ री बात
7.पुरुष के शरीर के अंगों के शुभ चिह्न या संकेत जो 32 माने गए हैं--पांच अंग दीर्घ--दोनों नेत्र, दाढ़ी, जानु और नासिका। पांच अंग सूक्ष्म--त्वचा, केश, दांत, अंगुलियां और अंगुलियों की गुदें। तीन अंग हृस्व--ग्रीवा, जंघा, मूत्रेन्द्रिय। तीन अंग गंभीर--स्वर, अन्तःकरण और नाभ। छः स्थान ऊंचे--वक्षस्थल, उदर, मुख, ललाट, कंधा और हाथ। सात स्थान लाल--दोनों हाथ, दोनों आंखों के कोने, तालु, जिह्वा अधर और नख। तीन स्थान विस्तीर्ण--ललाट, कटि और वक्षस्थल।
10.साहित्य में शब्दों, पदों, वाक्यों आदि की ऐसी परिभाषा या व्याख्या जिससे उसकी वास्तविक स्थिति का स्वरूप प्रकट होता है।
- उदा.--केई जिकै रसक जंण ज्यौं नायिका भेद जणाय दीजै है, तिण में रस री सागै मूरत ही बणाय दीजै है, सुकिया, परकिया सांमांन्यादि भेद प्रभेद लक्षण लक्षक बखाणीजै है, तिणां में धुनि, व्यंजना, लक्षणा अलंकार भाव, अनुभाव संचारी, सथायी पिण वचना- भास जांणीजै है।--र.हमीर
12.देखो 'लक्ष्मण' (रू.भे.)
रू.भे.
लंच्छण, लंच्छन, लंछण, लंछन, लक्खण, लखण, लखन, लखयण, लखिण, लख्खण, लच्छ, लच्छण, लच्छन, लछ, लछण, लछन।