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लघु  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
किसी की तुलना में छोटा।
  • उदा.--इक कहत गिरवर एह, दरसंत सब लघु देह। स्रब वरण वाँण सरीर, इम कहत दुरत अधीर।--रा.रू.
2.तुच्छ, भिन्न।
  • उदा.--सिव संभव सिव रूप सुरेसुर, सिव गुण दियण प्रणंभ कथ सुर। अति लघु तिकौ सरण तक आवे...।--सू.प्र.
3.हल्का।
4.तनिक, थोड़ा।
5.दुबला, पतला, कमजोर। क्रि.वि.--शीघ्र, सत्वर। सं.पु.[सं.लघुः]
1.समय का एक परिणाम, जिसमें 15 क्षण होते हैं।
2.ज्योतिष में हस्त, अश्विनी और पुष्य, इन तीन नक्षत्रों के समूह का नाम।
3.तीन प्रकार के प्राणायाम में से बारह मात्राओं का प्राणायाम।
4.व्याकरण में एक ही मात्रा वाला स्वर, ह्रस्व स्वर।
5.छोटा भाई। (ह.नां.मा.)
रू.भे.
लहु, लहू, लाड़ौ, लुघ, लुघवि, लुघु, लोअड़ौ, लोड़ौ, लोहड़ौ, लोहडौ, लौड़ौ, लौडौ, लौहड़ौ, लौहडौ, लवड़ौ, लहरौ, लहुंडौ, लहुअडउ, लहुऔ, लहुड़िऔ, लहुड़ौ, लहुडउ, लहुडुं, लहुडौ, लहोड़ौ, लोड़ियौ, ल्होड्‌यौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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