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लप  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.अंगुलियों व अंगूठे को मिलाकर गहरी की हुई हथेली, करतलपुट, आधी अंजली, पसर।
2.उतनी वस्तु जितनी उक्त एक संपुट में आती हो।
  • उदा.--1..बसु पूंगलपति रोकियौ बावळां, दियै लप चावळां त्रास देखै। आप जद पांवडा दिया ऊतावळा, सावळां करी जद राव सेखै।--खेतसी बारठ
3.किसी लचीली छड़ी या बेंत को हिलाने से उत्पन्न शब्द।
4.बरछी, तरवार आदि की चमक व गति।
5.ध्वनि विशेष।
  • मुहावरा--लप-लप करणौ--बीच-बीच में बोलना।
1.शीघ्रता से। ज्यूं.--व्हौ तौ लप देतीरौ उठ्‌यौ।
  • उदा.--1..मिरघा जांण मलपिया, लप चीत्तौ लाई। 'राधा' 'वाधा रिण रिहा, रिण तेग रचाई।--वी.भा.
  • उदा.--2..भटियांणी तौ जांणै इणरी ई बाट न्हाळती व्है, बोली बोली लप वहीर व्हैगी।।--फुलवाड़ी
रू.भे.
लपक, लफ, लिप, लुप।
क्रि.वि.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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