सं.स्त्री.
1.अंगुलियों व अंगूठे को मिलाकर गहरी की हुई हथेली, करतलपुट, आधी अंजली, पसर।
2.उतनी वस्तु जितनी उक्त एक संपुट में आती हो।
- उदा.--1..बसु पूंगलपति रोकियौ बावळां, दियै लप चावळां त्रास देखै। आप जद पांवडा दिया ऊतावळा, सावळां करी जद राव सेखै।--खेतसी बारठ
3.किसी लचीली छड़ी या बेंत को हिलाने से उत्पन्न शब्द।
4.बरछी, तरवार आदि की चमक व गति।
5.ध्वनि विशेष।
- मुहावरा--लप-लप करणौ--बीच-बीच में बोलना।
1.शीघ्रता से। ज्यूं.--व्हौ तौ लप देतीरौ उठ्यौ।
- उदा.--1..मिरघा जांण मलपिया, लप चीत्तौ लाई। 'राधा' 'वाधा रिण रिहा, रिण तेग रचाई।--वी.भा.
- उदा.--2..भटियांणी तौ जांणै इणरी ई बाट न्हाळती व्है, बोली बोली लप वहीर व्हैगी।।--फुलवाड़ी