सं.स्त्री.
1.प्राप्त होने की अवस्था या भाव, प्राप्ति।
4.शुभ अध्यवसाय तथा उत्कृष्ट तप, संयम के आचरण से तत्तत्कर्म का क्षय और क्षयोपशम होकर आत्मा में उत्पन्न एक विशेष शक्ति जो 28 प्रकार की मानी गई है।
- उदा.--गौतम गणधर गुण निलौ, लब्धि तणौ भंडार। चवदै सौ बावन सहु, नमता जय जयकार।--जयवांणी