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लव  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.लवः
1.भेड़ की ऊन।
2.भेड़ की ऊन उतारने का कार्य।
3.बहुत थोड़ी सी मात्रा, लेश मात्र।
  • उदा.--अर कतराक मूढ भाट बिद्या रौ लव पाय नव रत्न मैं आयौ जिकौ बेताळभट्ट तिणनूं भी भाट कहै।--वं.भा.
4.कवि। (अ.मा.)
5.पंडित। (अ.मा.)
6.काल का एक मान जो 36 निमेष का माना जाता है। (डिं.को.)
  • उदा.--जिण झालै बळ जोर, जग आहणि जाड़ेचां। पुहवि कच्छ पंचाळ, गंजि लीधी पटु पेचां। अधिप भीमरै अग्ग, विजय कीधा कई वारां। भड़ सात्रव घण भेटि, किया धड़ पार कटारां। उण सिंहदेव रण अग्रणी, लै बळ साथ चउत्थ लव। गरदाय सिबिर दीधौ गरट, जांमिक पण लीधौ सजव।--वं.भा.
7.रामचन्द्र के दो पुत्रों में से कनिष्ट पुत्र का नाम।
8.लवा नामक चिड़िया। सं.लव--
9.लवंग, लौंग।
10.सुरा गाय की पूंछ के बाल जिसकी चवर बनाई जाती है।
11.जाय-फल।
12.मौका, अवसर। [अं.]
13.प्यार, मोह-ब्बत।
14.देखो 'लिव' (रू.भे.)
  • उदा.--1..राजा कोड़ निनाणवै, ठेलै ठकुराई। तिण कारण जोगी हुवा, लिव सूं लव लाई।--केसोदास गाडण
  • उदा.--2..नर हर समरतां नह बीतै नांणौ, लवसूं तिकौ न लेवै। परनारी निरखै कर प्रीतां, दांम हजारां देवै।--र.रू.
1.किंचित्‌, सूक्ष्म। (अ.मा.)
2.समान, सदृश्य।
3.अत्यन्त अल्प परिमाण।
वि.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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