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लहर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.लहरिः, लहरी
1.तरल पदार्थों के ऊपरी तल में हवा लगने पर उस तल से उत्पन्न होने वाली वक्राकार रेखाएं, तरंग, हिलोर। (डिं.को.)
  • उदा.--1..जगजीत जोधांण के दरियाव कैसे। अभैसागर वाळसमंद दोऊ, मांनसरोवर जैसे। अम्रित के समुद्र तैसे लहरूं के प्रवाह छाजै।--सू.प्र.
  • उदा.--2..हंसा कहै रै डेडरा, सायर लहर न दिट्ठ। ज्यां नाळेर न चक्खिया, (त्यां) काचरिया ही मिट्ट।--अज्ञात
2.पौधों के समूह पर हवा के झोंके से उत्पन्न गति या कंपन। ज्यूं--चौधरी गवूँ में उठती लहरां देख 'र घणौ राजी व्हेतौ।
3.सहसा मन में जागृत होने वाली इच्छा, मन की मौज।
  • उदा.--आलम हाथ रौ रघुनाथ अचरिज, अवध भूप असंक। दिल गहर दीधी सरण हित दत, लहर हेकण लंक।--र.ज.प्र.
4.मन में उठने वाली आवेग पूर्ण प्रवृत्ति, आवेश, जोश।
  • उदा.--लसकरां फिरै अग घाव चढतौ लहर, आलमां दाव भवणां अलोड़ै। समद कछवाह तणौ बरण सुकजं, 'माधहर' तणा खग झाळ मुहोड़ै।--राव दुरजणसाल हाडा रौ गीत
5.क्षण, पल।
  • उदा.--सदा प्रसन्न कव सदन सीतळ नजर सुपेखै, मनवंछत करै हेकै लहर मांय। न देखै भाव भगती दिसा 'करनला', सनातन धरम लेखै करै साय।--मा.वचनिका
6.मादक या विषाक्त पदार्थ के सेवन करने से शरीर में उत्पन्न प्रतिक्रिया, नशे की तरंग।
  • उदा.--विविध प्रकारे भोजन हुता, जीमतां आई लहर। राय पएसी जांणियौ, इण रांणी दीधौ जहर।--जयवांणी
7.अनुराग, प्रेम।
  • उदा.--कहत ललिता बैद बुलाऊं, आवै नद को प्यारौ। वो आयां दुख नाहिं रहेगौ, है मोहि पतियारौ। वैद आयकर हात जो पकड़्‌यौ, रोग हैं भारौ। परम पुरुस की लहर व्यापी, डस गयौ कारौ।--मीरां
8.पवन का झोंका, वायु का झोंका।
  • उदा.--1..उत्तर आजस उत्तरइ, वाजइ लहर असाधि। संजोगणी सोहामणइ, विजोगणी अंग दाधि।--ढो.मा.
  • उदा.--2..नैरंति प्रसरि निरधण गिरि नीझर, धणी भजै धण पयोधर। झोले वाइ किया तरु झंखर, लवळी दहन कि लू लहर।--वेलि.
9.गंध-युक्त वायु, महक। क्रि.प्र.--आणी
10.कृपा, महर।
  • उदा.--लहर कर लहर कर बिंदक धर लांगड़ा, पहर कर कछोटौ निज पगांमां। डाक डमकार समकार कर डैरवां। महर कर महर कर मांमा।--गजौ खिड़ियौ
11.आनन्द, सुखभोग। ज्यूँ--सहर री लहरां लेवणी।
12.सिर के बालों, वस्त्रों की रंगाई तथा खाट की बुनाई में होने वाला वक्र रेखांकन।
  • उदा.--अगर खेवै है, सुगंध देवै है। सूँघौ सूंघीजै है, सीसियांरी सीसियां ऊंधीजै है। चोटी करै है, तिण आगै नायण री लोटी फिरै है। गुंथबा में पड़ै है लहर, तठै कहौ कुण सकै ठहर।--र.हमीर
13.महिलाओं के कान का आभूषण विशेष।
14.स्पुट गायन की क्रिया, रागणी करने की क्रिया।
15.पुराणों के अनुसार निष्फलीय शंख के बोलने की ध्वनि।
  • उदा.--तद संख लहरां दीवी, रांड तूं ईयै नूं क्यौं मारै? हूं थारै आफै आयौ छुं।--बूढी ठग राजा री बात,
रू.भे.
लहरांण, लहरि, लहरी, लहरीय, लहिर, लहिरी, लै'र, लैर।
अल्पा.
लहरकौ, लहरौ।
पर्याय.--उझेल, उतकलिका, उरमी, बेक, भंगि, हिलोळ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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