सं.पु.यौ.
सं.लक्ष+ प्रसाद
चारण कवियों की कृतियों तथा उनके द्वारा किये गये महत्त्वपूर्ण कार्यों पर प्रसन्न होकर राजा, महाराजाओं द्वारा दिया जाने वाला एक लाख रुपये का पुरस्कार या भेंट।
- उदा.--1..जिणि देसे सज्जण वसइ, तिणि दिसि वज्जउ वाउ। उअ लगै मौ लग्गसी, ऊ ही लाखपसाउ।--ढो.मा.
- उदा.--2..गांम आठ बारह गयंद, पनरह लाखपसाव। गुण पातां रीझै 'गजण', दीधा दिल दरियाव।--सू.प्र.
रू.भे.
लाखांपसाउ, लाखांपसाव।
विशेष विवरण:-प्राचीन काल में यह नकद रूप में दिया जाता था, कालान्तर में लाख पसाव के पुरस्कार में हाथी, घोड़े, वस्त्र, आभूषण आदि के अतिरिक्त कम से कम एक हजार से पांच हजार तक की वार्षिक आय की जागीर भी होती थी जो कि पुरस्कार की पूर्ति हेतु होते थे।