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लाघव
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.लाघवं
1.लघु, छोटा।
उदा.--
1..देवी काळिका मा नमौ भद्र काळी, देवी दूरगा
लाघव
चारिताळी। देवी दांणवां काळ सुरपाळ देवी, देवी साधकं चारणं सिध सेवी।--देवि.,
उदा.--
2..मुख मंगळ नांम उचार सदा, तन के अघ ओघन दाधव रे। हनमंत बिभीखन भांन तनै, जिन कीन वडे, जन
लाघव
रे।--र.ज.प्र.
2.कमी, अल्पता।
3.दस प्रकार के यति धर्मों के अन्तर्गत पांचवां यति धर्म।
उदा.--
खंति मुति अज्जव मद्दव,
लाघव
पांचमो जांण। नित वखांण्या मुनिराज ने, भगवंत स्री वरधमांन।--जयवांणी
4.हल्कापन।
5.तेजी, शीघ्रता।
6.हाथ की सफाई या चालाकी।
7.संक्षिप्तता।
8.असम्मान, अप्रतिष्ठा।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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