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लाली
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.लाल होने का भाव या अवस्था, ललाई, सुर्खी।
उदा.--
सांवरिया म्हांनै भांग पिलाई, मेरी अंखियां में
लाली
छाई। काहै री कूंडी (राधा) काहै रा घोटा, काहै री सुवाफी बणाई।--मीरां
उदा.--
2..इण अधरां रा मिठास री तौ बात कुण कहै, मूँगियां री
लाली
तौ यां री दलाली में बहै। आ छोटी मूंफाड़ किसड़ीक सोहै है, औ मंदहास किणनूँ न मोहै है।--र.हमीर
2.प्रतिष्ठा, इज्जत।
उदा.--
धन री धूड़ हुयगी, माया रा कोयला बणग्या। अळेवण अरजन रै पगां पूगी,
लाली
लेखै हुगी।--दसदोख
3.जीभ, जबान।
उदा.--
होटां रो सिणगार।
लाली
री झिकाळ। पण मन रौ तो भेइ ई अगम।--फुलवाड़ी
4.रौनक, शोभा।
अल्पा.
लालकी।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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