सं.स्त्री.
सं.
1.आनन्द, मौज।
- उदा.--1..सिर, संती जिणेसर सेवत ही सुख खांण। इण भव लहै लीला पर भव पद निरवांण।--ध.व.ग्रं.
2.ऐसा कार्य जो केवल मन की उमंग से मनोरंजन के लिए किया जाय।
- उदा.--लखण बत्रीस संयुक्त। बाल लीला माहै राजकुआरि दुलडिया रमै छइ।--वेलि.
3.भगवान् द्वारा विभिन्न अवतारों में किए गये आच-रण व कार्यों का प्रदर्शन या अभिनय करना। ज्यूं--रांमलीला, क्रस्णलीला।
4.रचना, बनावट।
- उदा.--1..कुदरत री इण लीला सूं डरण री कांइ जरूरत।--फुलवाड़ी
- उदा.--2..हीलाकर हिणके ईला हुय आधा, लीला भगवत री लीला नहीं लाधा।--ऊ.का.
5.चरित्रगान।
- उदा.--चाकर रहसूँ बाग लगास्यूँ नित उठि दरसण पास्यूं। व्रंदावन की कुंज गलिन में, तेरी लीला गास्यूँ।--मीरां
6.नायिका का एक भाव, चेष्टा।
7.ईश्वरावतार द्वारा मनुष्योचित की जाने वाली क्रीड़ा, वि.वि.--भक्तिमार्ग के मतानुसार भगवान् विभिन्न कार्य-सिद्धि हेतु या मनोरंजनार्थ अवतार धारण करके जो आचरण करते हैं उसे भगवान् की लीला कहते हैं।
- उदा.--1..मणि त्रइलोक प्रभा जग मंडित, इक पतनीव्रत धरम अखंडित। कारज सुरां कर किय क्रीला, लीला समंद मांनखी लीला।--सू.प्र.
8.विशेषक नामक छंद का दूसरा नाम।
9.बारह मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में एक जगण होता है।
10.एक प्रकार का वर्णवृत जिसके प्रत्येक चरण में भगण तगण और एक गुरु होता है।
11.चौबीस मात्राओं का छंद विशेष जिसमें 7+7+7+3 पर विराम होता है और अन्त में सगण होता है।
12.हरा घास।
- उदा.--हीलाकर हिणकै ईला हुय आधा, लीला भगवत री लीला नहीं लाधा।--ऊ.का.
14.निसांणी छंद का भेद विशेष जिसके प्रत्येक चरण दस गुरु और तीन लघु वर्ण हो।
15.पद्मराज की पत्नी जिसने अपने पति की मृत्यु के पश्चात् सरस्वती की कृपा से उसे पुनः जीवित किया।