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लोध
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.लोध्र
एक पेड़ विशेष जिसके लाल व सफेद फूल लगते हैं तथा इसकी छाल लकड़ी व फूल औषध में काम आते हैं। (डिं.को.)
उदा.--
लीला पोयण पांण केसड़ा कुंदम राजै।
लोध
-रजां भल भांमणियां रै मुखड़ै साजै। चोटी कुरबक फूल सिरिसा करण सजावै। सीस कदबां फूल गोरियां घणी लुभावै।--मेघ,
रू.भे.
लोद, लोध्र ।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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