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लोर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.सारन-भादो मास में अविच्छिन्न व निरन्तर छोटी-छोटी बूंदों की वर्षा करने वाले बादल या उक्त बादलों से होने वाली लगातार वर्षा, झड़ी।
  • उदा.--1..थांनै थांनै ए म्हारी वाड़ा री वडवेल, थांनै ए कुण सींचैगौ। सींचै सींचै, ए म्हारौ सांवणिया रौ लोर भादूड़ै रौ झड़ झेलेगौ।--लो.गी.
2.तीक्ष्ण ध्वनि, टेर, रट।
  • उदा.--1..बाबहिया तूं चोर, थारी चांच कटाविसूं। राति ज दीन्ही लोर, मइं जांण्यउ प्री आवियउ।--ढो.मा.
  • उदा.--2..बाबहिया तरपंखिया, तइं किउं दीन्ही लोर। मइं जांण्यउ प्रिय आवियउ, ससहर चंद चकोर।--ढो.मा.
3.समूह, झुण्ड।
  • उदा.--पअक्खर-रोर, लसक्कर लोर। क्रमै दळ कोम, गह-मह गोम।--गु.रू.बं.
4.तरंग, लहर।
5.खेत की सीमा पर प्राकृतिक रूप से पंक्तिबद्ध वृक्षों की कतार।
रू.भे.
लूर, लौर।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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