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वरसा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.वर्षा
1.बरसने की क्रिया या भाव।
2.आकाश के मेघों से पानी का बरसना, बारिस, बरसात।
  • उदा.--करि पांण सुतांण कमांण कसै। वरसांण सरांण तणा वरसै।
3.बरसात का मौसम, वर्षा ऋतु। पर्या.--बरसण, ब्रस्टी।
4.किसी चीज का अधिक मात्रा में ऊपर से गिरना, वृष्टि। क्रि.प्र.--करणी, होणी।
5.लगातार चलने वाला कोई क्रम, बौछार। क्रि.प्र.--आणी, पड़णी, होणी।
6.किसी वस्तु की बहुतायत होने की अवस्था
रू.भे.
बरखा, बरसा, बरिखा, बिरक्खा, बिरखा, वरखा, वरिक्खा, वरिखा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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