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वात  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.वायु के अधिष्ठाता, पवन देव, आठ दिग्पालों में से एक। सं.स्त्री.--
2.वायु, पवन, हवा। (अ.मा., ह.नां.मा.)
  • उदा.--फागुन फरहरै वात प्रभात नौ सीत अपार। नाह सुं फागन रमैं बहु राग, सुहागिण नारि।--ध.व.ग्रं.
2.शरीरस्थ तीन तत्व-कफ, वात पित में से दूसरा, जिसके कुपित होने से अनेक रोग पैदा होते हैं।
  • उदा.--आधि भूतक अधिदेव अध्यातम, पिंड प्रभवति कफ वात पित। त्रिविध ताप तसु रौग त्रिविध में, न भवति वेलि जपंतनित।--वेलि.
3.शरीर की अपान वायु, अधोवायु।
रू.भे.
बत, बात, बाय, वायइ।
4.देखो 'बात' (रू.भे.)
  • उदा.--1..ग्रहै अंत्राबळि, उड़ि चली ग्रीझणी। त्रिहूं भुवण रही वात सोहड़ां तणी।--हा.झा.
  • उदा.--2..वरि हूं आविसी थई रही, मझ लागी हूं मात। मइं माधव-विण एक क्षण, जीव्यानी नहीं वात।--मा.कां.प्र.
  • उदा.--3..पिता प्रमांण करूं किस्यूं, मोकलावउं किहां वात। करसिइं ते कलपांत कलि, स्रवणि सुणतां वात।--मा.कां.प्र.
  • उदा.--4..रावळा आसापुरां जांणै, थां थकां क्युं न जांणां। रावळ टीकै बैठै, तरै म्हां नै रावळ बात।--नैणसी
  • उदा.--मास तीन चार रौ आवाधांन छै। समुद्र मोहल में बैठौ छै। वातां एकांयत करै छै।--कुंवरसी सांखला री वारता


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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