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वारि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.पानी, जल।
  • उदा.--1..बापरै तखत बैठी, धारि छत्र जोम धारि। वीजळां दिलेस देस, मारि कीध थाळ वारि
  • उदा.--2..अहिलइं गयु अवतार, इम कांमकंदलां नारि। परवत स्रंगि तलावड़ी, व्रथा रहिउं जिम वारि।--मा.कां.प्र.
  • उदा.--3..वारि वसंती पद्मिनी, ससीहर सूर आकासि। महीपति! तिम महिला-तणां, मन ते माधव-पासि।--मा.कां.प्र.
2.कोई तरल पदार्थ।
3.सरस्वती, वाणी।
4.निसानी छंद का एक भेद, जिसके प्रत्येक चरण में 4 गुरु व 15 लघु वर्ण होते हैं।
5.देखो 'वार' (रू.भे.)
  • उदा.--1..छांना नितु पहुचइ परधांन, रळियात थ्या चिति परधांन। मास दोह आगळि असवार, आया पूगळि नयरि ते वारि।--ढो.मा.
  • उदा.--2..कहिस्यां तौ तूझ भलौ करणाकर, वपि एकणि सहु धरै विचारि। रावळ जांम सरीखौ राजा, वळै धड़िस जौ बीजी वारि।--ईसरदास बारहठ
6.देखो 'वारी' (रू.भे.)
रू.भे.
बारि, बारीय।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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