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वास  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.वास
1.रहने की क्रिया, निवास, आवास।
  • उदा.--1..काळ है, अंदेस नां संदेस औ कर्‌यौ। देसतैं बिदेस वास त्रासतैं डर्‌यौं।--ऊ.का.
  • उदा.--2..हर कोई जीव घालिया हाळौ, वास सदा जिण मांय वसै। परठण कज रोटी कपड़ां री, जिकौ कमावै भोग जिसै।--ओपौ आढ़ौ
  • उदा.--3..लोग सारौ कांमरौ बडौ दिलावर पण धूहुड़ गंवार लोग सो उघाड़ौ ही जे रहै। पंछी ज्यूं वास रहै।--दूलची जोइयेरी वारता
2.विश्राम, आराम।
  • उदा.--1..पण पाबू स्त्री रौ मुख ही न दीठौ नै तरवारां रै धारातीरथ में स्नांन कर सती सहेतां सुरग वास कीधौ।--वीर सतसई की टीका
  • उदा.--2..हे प्रभु इण आरांम री ठौर रे बणावणै वाला नूं वैकूंठ रौ वास देय आरांकम दीजै।--नी.प्र.
3.रहने का स्थान, डेरा।
  • उदा.--1..ढोलइ सूवउ सीख दइ, जा पंछी ग्रह वास। उडियर पाछउ आवियउ, माळवणी कइ पास।--ढो.मा.
4.घर, गृह। (अ.मा., ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..म्हारै तौ माता औ हीज डायजौ है म्हनै तौ सुख रै वास परणाजै-अरथात ऐड़ौ सुवस हौवै किण सू इ लड़ै न भिड़ै गरीब होवै तौ सुख है।--वीर सतसई की टीका
  • उदा.--2..अबै राघवदे सासरै गयौ। दिन पांच रह्यौ। आंणौ करि छिपियै आयौ। तिकौ जैतसीजी रै वास बसियौ।--जैतसी ऊदावत री बात
5.जगह, स्थान।
  • उदा.--नहीं तूं अन्न नहीं तुं आस। नहीं तुं बन्न नहीं तूं वास।--ह.र.
7.शरण, पनाह, आसरा।
  • उदा.--1..ताहरां हरदास उण वगत बीरमदेजी रौ वास छाडियौ। नागोर नूं हालिया, सरखेलखां रै वास रहण नूं।--नैणसी
  • उदा.--2..पछैं कितराहेक दिने राठौड़ तेजसी रांणा उदयसिंघ रै वास वसीया।--राव मालदेव री बात
  • उदा.--3..सहर अजमेर वडौ गढ। तेथ राजा वीसलदे चहवांण राज्य करे। वीसलदे रे वास हररांम चहवांण रहै।--देवजी बगड़ावतां री बात
8.पास में रखने या बसाने की क्रिया।
  • उदा.--ताहरां राजा हररांम नुं कहै। हररांम तुं आ धरै वास। धरै ले जाह ज्युं थारौ दुहुवां रौ पण रहै।--देवजी बगड़ावतां री बात
9.गंध, बू।
  • उदा.--1..अबूझ बाळक नै तौ जांणै प्रीत री वास आवै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..जिण मारग केहर वुवौ, लागी वास तिणांह। ते खड़ ऊभा सूखसी, नह चरसी हिरणांह।--अज्ञात
10.सुगंध, महक।
  • उदा.--1..रवि भैरव जीवणी, घणै आणंद चहक्की। संग वेळ सूरमा, वास अगरेळ महक्की।--रा.रू.
  • उदा.--2..सुहड़ा स्रब अंग चंग दिग्गंबर 'राइ अंगण सोभ ए। मधुकर गुंजार डबरी सांमळ, परिमळ वास लोभ ए।--गु.रू.बं.
  • उदा.--3..जावसी देह सोभा न जावसी। वास रह जावसी फूल वाळी।--भीखजी रतनू
अल्पा.
बासड़ी, वासड़ी।
11.वस्त्र, परिधान, पौशाक। (सं.वाश)
12.गर्जना, दहाड़ना क्रिया।
13.चिल्लाहट।
14.भूंकने की क्रिया।
15.गुंजन, गुंजार।
16.बुलावा, पुकार।
17.वस्तु, पदार्थ।
18.जागीर।
रू.भे.
बांस, बास, वासइ, वासई, वासउ, वासि।
अल्पा.
बासड़ी, बासड़ौ, वासड़ली, वासड़ौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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