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विटप  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.विटप:
1.वृक्ष, पेड़। (अ.मा., नां.मा.)
  • उदा.--सिल विकट फरस सुखेण रै, तिरसूल ग्वायख तेण रै। भिंडपाल गजगव विटप भड़, धिख गदा वभीखण उवरधर।--र.रू.
2.पेड़ या लता की शाखा।
  • उदा.--विस्णु रूप अवतार परगट पोहमी में आए, सतजुग विछरै जीव उनकूँ आंन चिताए। विस्णु धरम परगट कियौ आंन धरम विटप विहंडनं, संभरथळ परगट सही जोत रूप जग मंडनं।--कोल्हजी चारण
3.अण्डकोष का मध्यस्थ पर्दा।
रू.भे.
बिटप।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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