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विदर     (स्त्रीलिंग--विदरांणी, विदरी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'विदरी' (रू.भे.)
2.देखो 'विदुर' (रू.भे.)
  • उदा.--1..बोलां में ओछा विदर, मोलां में नह मोट। पोलां में 'परताप' रै, गोलां वाळौ गोट।--ऊ.का.
  • उदा.--2..ब्रह्मा जो न करत विदर, जग मांहै जगजीत। असल नसल रौ ऊघड़त रूड़ापौ किण रीत।--बां.दा.
  • उदा.--3..विदर बहादर बाजवा, कड़ बांधै केवांण। कर जोडण लटका करण, विदर न छोडै वांण।--बां.दा.
  • उदा.--4..प्रथम विदर पूजिया, मात केकइ मनां मैं, पीव मरण पांमिया, पूत चालिया वनां में। पछै विदर पूजिया पंडव कैरवां सदाइ, माह माह कट मुवा, दिली जीवतां न पाइ। विदर नूँ पूज वगड़ाबतां, जैचंद 'पीथल' जूंझीया, 'मौकमा' कमंध मोटा मिनख, जिकै विदर तै पूजिया।--अरजुणजी बारहठ
  • उदा.--5..पै'लां पेट वधाय पछै विदरी परणीजै, दुलहे नावै दाय फेर फस जावै बीजै। दुख चुड़ै दोवड़ै कदै नह लागौ काय, नाकारौ नह करै जेण कुळ पद जी जाय।--अरजुणजी बारहठ
(स्त्री.विदरांणी, विदरी)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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