सं.पु.
सं.
1.एक देवयोनि विशेष। (अ.मा., नां.मा.)
- उदा.--1..जिण सभा रै मांहै ब्रह्मादिक इंद्रादिक आद तेंतीस क्रोड देवता इठ्यासी हजार रिख विद्याधर ग्रंध्रप जक्ष आद देस देस रा राजा बैठा है तिण बखत स्रीरघुनाथजी लिखमणजी रा बखांण स्रीमुख सूं किया।--र.रू.
- उदा.--2..धरत ध्यांन चारन विद्याधर, करत गांन गुन अप्सर किन्नर। गुह्यक यक्ष रक्ष गंधरबह, सिद्ध पिसाच भजत तव सरवह।--मे.म.
2.कवि, पंडित (अ.मा.)
- उदा.--1..विद्याधर वड वखतावरु, महियल मैं हौ महिमा महिमाय। राउ रांणा मोटा राजीया, पुहवीपति हो लागै जसु पाय।--ध.व.ग्रं.
- उदा.--2..गुण गजबंध तणा कब गावै, दुरस परायण त्री दरसावै आस धरै विद्याधर आया, कवि सुज हसतीबंध कहाया।--रा.रू.
- उदा.--3..दांन कै प्रमांण दुहुँ राजा नूं कै पांण, मेघ कै मंडांण कहा सातूं मैहरांण देस देस के विद्याधर सूत मागध बदीजण, आसा धर आए सो भए पुराण।--रा.रू.
3.एक रसौषधि विशेष। (वैद्यक)
4.काम शास्त्रानुसार एक आसन, रति-बन्ध।
5.एक वर्णिक वृत्त विशेष जिसके प्रत्येक चरण में चार मगण होते हैं और कुल बारह अक्षर होते हैं।
- उदा.--मगण च्यारि पायै मंही, बूझव आखर बार। सेस कहै रूपक सरस, विद्याधर विसतार।--पिं.प्र.
रू.भे.
विज्जाहर, विदियाधर, विद्याधारु, विद्याधारी।