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विभावरि, विभावरी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.विभावरी
1.रात, रात्रि। (अ.मा.मा., नां., ह.नां.मा.)
  • उदा.--रज डंबर अंबर मग्ग चढै, भ्रम कोक विभावरि सोक बढै। नभ देव विमांन न की अवली, उडि गिद्धनि के गन संग चली।--ला.रा.
2.वेश्या।
3.चतुर व मुखरा स्त्री।
4.कुटनी, दूती स्त्री।
5.पतिता स्त्री, पथभ्रस्ट स्त्री।
6.व्यभिचारिणी स्त्री।
7.पहली पत्नी के जिन्दावस्था में लाई गई दूसरी स्त्री, रखैल।
रू.भे.
बिभावरी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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