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विभास  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.चमक, तेज, प्रकाश, दीप्ति।
2.सवेरे के समय गाया जाने वाला एक राग विशेष (संगीत)
  • उदा.--1..छतीस राग छाजती, निहाव धाव नोबती। भजे विभास भैरवी, रळी कळी कळी रवं।--रा.रू.
  • उदा.--2..दोय घड़ी रात लारली रहै सो ब्रह्म मुहूरत। इण वेळा विभास वेळावळ में लाखों-फूलांणी गवीज़ै-प्रह लाखौ सु विहांण।--बां.दा.ख्यात
  • उदा.--3..रात तौ इण रंग मैं विदित हुई। इतरै परभात हुवौ। भैरू विभास। विलावलि को वखत आयौ। गुणीजनां राग झिलायौ।--पनां
3.एक देवयोनि विशेष।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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