सं.पु.
सं.
1.रामस्नेही साधुओं का एक भेद विशेष, जिसके साधु बदन, नंगे शिर और नंगे पाव रहते हैं। (मा.म.)
2.केवल ताल देने के काम आने वाले बाजे। वि.(सं.)
2.सांसारिक प्रपंचों आदि से दूर रहने वाला, सांसारिक बन्धनों से मुक्त।
3.उत्तेजनायुक्त, उत्तेजित।
4.भोग विलास से दूर रहने वाला, जिसे कामवासना न हो।
5.बदले हुए रंग का, बदरंग।
7.कर्मानुष्ठान के फल की आशा न रखने वाला, त्यागी।
- उदा.--1..मिथ्याद्रस्टि तणी उत्थापक, व्यक्त गुणै सुविलासी। वलि विरक्त मोहादिक भावै, एक युक्ति अभ्यासी।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
- उदा.--2..पण राजा को दांन लेऊं नहीं विरक्त नूं त्रण बराबर छौ।--पचदंडी री वारता
रू.भे.
बिरकत, बिरक्त, बिरगत, विरकत, विरगत, विरत, विरता, विरत्त, विरिकत, विरिक्त, विरित।