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विरक्त  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.रामस्नेही साधुओं का एक भेद विशेष, जिसके साधु बदन, नंगे शिर और नंगे पाव रहते हैं। (मा.म.)
2.केवल ताल देने के काम आने वाले बाजे। वि.(सं.)
1.अत्यन्त लाल, गहरा लाल।
2.सांसारिक प्रपंचों आदि से दूर रहने वाला, सांसारिक बन्धनों से मुक्त।
3.उत्तेजनायुक्त, उत्तेजित।
4.भोग विलास से दूर रहने वाला, जिसे कामवासना न हो।
5.बदले हुए रंग का, बदरंग।
6.अनुराग या आसक्ति रहित।
7.कर्मानुष्ठान के फल की आशा न रखने वाला, त्यागी।
  • उदा.--1..मिथ्याद्रस्टि तणी उत्थापक, व्यक्त गुणै सुविलासी। वलि विरक्त मोहादिक भावै, एक युक्ति अभ्यासी।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
  • उदा.--2..पण राजा को दांन लेऊं नहीं विरक्त नूं त्रण बराबर छौ।--पचदंडी री वारता
8.खिन्न, उदासीन।
रू.भे.
बिरकत, बिरक्त, बिरगत, विरकत, विरगत, विरत, विरता, विरत्त, विरिकत, विरिक्त, विरित।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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