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विवह  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.देवराज इन्द्र। (ना.डिं.को.)
2.अत्यन्त वेगवान्‌ वायु, तूफान।
3.देखो 'विबुध' (रू.भे.)
4.देखो 'विविध' (रू.भे.)
  • उदा.--दीसइ विवह चरीय, जांणिज्जइ सयण दुज्जण सहाबौ। अप्पांण च कळिज्जइ, हडिज्जइ तेण पुहवीए।--ढो.मा.
  • उदा.--2..केतां भडां निवाजस कीजै, दांन प्रसन मन पातां दीजै। अतरै दूत खबर लै आया, समाचार सह विवह सुणाया।--रा.रू.
  • उदा.--3..स्रीमंडळ रबाब सार रुद्दवीणा झणंकार, तंत मझि धोर तार ग्रांमा त्रिहणै। ताळ कंसाळ झालरी अघोटी कच्छिबी एक, आगळी वाजै अनेक विवह वणै।--गु.रू.बं.
  • उदा.--4..अंनि अबीर जबाधि, विवह अन्नेक परिम्मळ, चंपक दळ केतकी कुसम सेवती सुपड्डल । नीसांण सद्द सुणियै नहीं, भेर नाद मरदग घण, आघ्रांण महल्लै अंग रहण, इम अलिअर गुंजारवण ।--गु.रू.बं.
  • उदा.--5. विवह वरन्ना कप्पड़ा, विवह वरन्नी पाग। फजर हुवंदी फूलिया, जाण मलूकां वाग।--गु.रू.बं.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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