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विसेविसा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'विसवावीस' (रू.भे.) , विसेस--वि.(सं.विशेष)
1.अधिक, विशेष, ज्यादा।
  • उदा.--1..पनगेस धरेस सुरेस तेस सझै पेस, भूतेस विसेस चिंतवेस ध्यांन भेस, जीतेस, अरेस बंध सेस क्रीत जपौ जेस, 'किसनेस' कवेस नरेस कोसळेस।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..खरळां रा आदमियां रौ जाबतौ आप रा मुख सुं करावै छै। दारू रा घड़ा बीच में पड़िया छै। सारै साथ नुँ पायजै छै। फेर उहां नुं विसेस जाबतौ देय पावै छै।--कुंवरसी सांखला री वारता
  • उदा.--3..'सोमल' ब्राह्मण नीधिया, 'सोमा' नांमै एक। प्रत्यक्ष जांणै अपछरा, चतुराई रूप विसेस।--जयवांणी
2.मुख्य, खास, प्रधान।
  • उदा.--1..विसेस बाब अेलची रा में, जिकी जीभ बादसाहां री छै अर हाल, समझ, बादसाहां रा तौर अेलची उण रा सूं मालम होय।--नी.प्र.
  • उदा.--2..पूत पिता एकै थया, थै चढ जावौ देस। बोलां कोला बोलिया, वीतौ वयण विसेस।--रा.रू.
3.साधारण से परे, अतिरिक्त या अधिक। सं.पु.--
1.अन्तर भेद।
2.हर्ष, खुशी।
3.पदार्थ, वस्तु।
4.अधिकता, उत्तमता, विशेषता।
5.विचित्रता, अद्भुतता, अनोखापन।
6.सार, तत्त्व।
7.प्रकार, किस्म।
8.दमन नामक शिवावतार का शिष्य।
9.सात प्रकार के पदार्थों में से एक प्रकार का पदार्थ (वैशैषिक दर्शन)
10.एक प्रकार का पद्य विशेष, जिसमें तीन श्लोकों या पदों में एक ही क्रिया रहती है। (साहित्य)
11.एक प्रकार का अर्थालंकार विशेष, जिसमें आश्चर्योत्पादक अर्थ (घटना) का वर्णन होता है। इसके तीन भेद होते हैं।
रू.भे.
बसेस, बिसेस, वछेक, वसेक, वसेख, वसेस, विसक्ख, विसेक, विसेख।
अल्पा.
वसेखौ, विसेखि, विसेखियौ, विसेखी, विसेखौ, विसेसि, विसेसौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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