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वेलि
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'बेल' (रू.भे.)
उदा.--
1..तेरैं पासा खासा दासा, पासा वांसाहि का प्यासा, मेरी आसा
वेली
फैलि तुं ही इछ्या अभा है।--ध.व.ग्रं.
उदा.--
2..मुझ आंगणि सुरतरु
वेलि
फैली, चिंतामणि करियल आवि मिली जसु समरणि सुर धेनु मिली, सो सेवउ सेवउ जिनवर रंग रली।--स.कु.
उदा.--
3..तेल विहूण उ दीवड्ड, मूल विहूणी
वेलि
। पांणी विहूणी दहुरी, तिम होई ति महेलि।--मा.कां.प्र.
उदा.--
4..रांम अवतार नांम ताइ रुखमणि, मांन सरोवरि मेरुगिरि। वाळकति करि हंस चौ बाळक, कनक वेलि बिहुं पांन किरि।--वेलि.
उदा.--
5..मूरखु कोई छइ खरउ गमारु, सूकडि बाली करइं छार। जिन धरम लाधउ पाय म पेलि, सुख तणी ऊपाडि म
वेलि
।--वस्तिग
2.देखो 'बेली' (रू.भे.)
3.देखो 'वेळा' (रू.भे.)
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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