सं.पु.
सं.वैयावृत्य
एक प्रकार का व्रत या तप विशेष जिसमें आचार्य आदि बड़े एवं आदरणीय पुरुषों की दस प्रकार से सेवा की जाती है। (जैन) वि.वि.--उक्त व्र्रत या तप में आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, गलानी (रोगी), तपस्वी, स्थविर, स्वधर्मी, कुल (गुरु भ्राता), गण (सम्प्रदाय के साधु) और संघ (तीर्थ) को आहार, वस्त्र, पात्र, औषधोपचार आदि दिये जाते हैं तथा पाद, पीठादि की चम्पी की जाती है।