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वैयावच, वैयावच्च, वैयाव्रत, वैयाव्रत्य  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.वैयावृत्य
एक प्रकार का व्रत या तप विशेष जिसमें आचार्य आदि बड़े एवं आदरणीय पुरुषों की दस प्रकार से सेवा की जाती है। (जैन) वि.वि.--उक्त व्र्रत या तप में आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, गलानी (रोगी), तपस्वी, स्थविर, स्वधर्मी, कुल (गुरु भ्राता), गण (सम्प्रदाय के साधु) और संघ (तीर्थ) को आहार, वस्त्र, पात्र, औषधोपचार आदि दिये जाते हैं तथा पाद, पीठादि की चम्पी की जाती है।
रू.भे.
वेयावच, वेयावच्च।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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