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व्यथा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.रोग, बीमारी। (ह.नां.मा.)
2.भय, डर।
3.चिन्ता, दुःख।
4.कष्ट, दु:ख।
  • उदा.--1..आखरी लाख मांनै न औ, खाक करी मम खाल री। कुण सुणै साल मोटी कथा, हाय व्यथा मौ हाल री।--ऊ.का.
  • उदा.--2..कहती संकूं मन व्यथा, बिन कहियां तन ताप। मौ जोबन मैमत हुवौ, विरहण करै विलाप।--अज्ञात
  • उदा.--3..नहिं सही जाय जद ह्वै निडर, कही जाय मोटी कथा। बय बखत अमोलक ह्वै व्रथा, विमळ हियै खोटी व्यथा।--ऊ.का.
5.विकलता, व्याकुलता, परेशानी।
6.पीड़ा, वेदना, दर्द।
  • उदा.--1..दादू सिर करवत बहै, अंग परस नहिं होइ। मांहि कलेजा काटियै, यहु व्यथा न जांणै कोइ।--दादूबांणी
रू.भे.
बिथा, ब्यथा, विथ, विथा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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