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व्यभचार, व्यभिचार, व्यभीचार  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.व्यभिचार:, व्यभीचार
1.दूषित आचरण, बदचलनी।
2.रति क्रीड़ा, संभोग, भोग।
  • उदा.--मि विरयु वीरसेन सुत आदि, हंस तणै वचनै उह्लादि। देव तह्मौ पित नि ठारि, पुत्री साथि सु व्यभचार।--नळाख्यांन
3.सती न होने की स्थिति या भाव, असतीत्व।
4.स्त्री का पर-पुरुष से व पुरुष का पर-स्त्री से अनुचित सम्बन्ध।
  • उदा.--दादू मरणा खूब है, निपट पूरा व्यभिचार। दादू पति को छोड कर, आंन भजै भरतार।--दादूबांणी
5.कामपिपांसा को अनुचित रूप से शान्त करने की क्रिया या भाव।
6.अनियमितता, अपवाद।
7.अपराध, दोष।
8.असत्य, झूठ।
रू.भे.
बिभचार, बीभचार, विभचार, वीभचार।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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