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व्यापक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
1.चारों ओर फ़ैलाया हुआ, सर्वत्र व्याप्त, सर्वत्र विद्यमान।
  • उदा.--1..ब्रह्मांड व्यास;परधी प्रकास, अति व्याप एस व्यापक विसेस। वैराट व्रद्ध, सानंद सिद्ध, घट बढन घाट, नूतन निराट।--ऊ.का.
  • उदा.--2..तुं जांह तांह व्यापक रहै, कठै अव्यापक नांहि। तुझि कुं किसका डर नहीं, जनहरिया मुझि मांहि।--अनुभववांणी
  • उदा.--3..ज्युं घायल उर सालै पीरा, त्युं त्युं व्यापक रांम सरीरा। घायल की घायल सौ जांनै, परगट कहि दिखलाउं छांनै।--अनुभववांणी
  • उदा.--4..भै निंद्रा आसा इधक ना तिस व्यापक सुधा।--केसोदास गाडण
  • उदा.--5..अठोत्तर पुत्री जाति अनूप, भलासुत दोइ हजार सरूप। उपना एकण पिंड अनेक, हूवा संसार व्यापक हेक।--रा.वंसावळी
  • उदा.--6..सुपहां दर चंचळ वाळ सरू, घट व्यापक गोरखनाथ गरु। तुडतांण जिसौ चउवांण तपै, कर वेढ सिवाड मैं वास कपै।--पा.प्र.
2.छाया हुआ।
3.सामान्य, साधारण।
4.ढकने या घेरने वाला।
रू.भे.
बियाप, बियापक, ब्यापक, वापक, विआपक, वियापक, वीआपक, वीयापक, व्याप।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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