वि.
सं.
1.चारों ओर फ़ैलाया हुआ, सर्वत्र व्याप्त, सर्वत्र विद्यमान।
- उदा.--1..ब्रह्मांड व्यास;परधी प्रकास, अति व्याप एस व्यापक विसेस। वैराट व्रद्ध, सानंद सिद्ध, घट बढन घाट, नूतन निराट।--ऊ.का.
- उदा.--2..तुं जांह तांह व्यापक रहै, कठै अव्यापक नांहि। तुझि कुं किसका डर नहीं, जनहरिया मुझि मांहि।--अनुभववांणी
- उदा.--3..ज्युं घायल उर सालै पीरा, त्युं त्युं व्यापक रांम सरीरा। घायल की घायल सौ जांनै, परगट कहि दिखलाउं छांनै।--अनुभववांणी
- उदा.--4..भै निंद्रा आसा इधक ना तिस व्यापक सुधा।--केसोदास गाडण
- उदा.--5..अठोत्तर पुत्री जाति अनूप, भलासुत दोइ हजार सरूप। उपना एकण पिंड अनेक, हूवा संसार व्यापक हेक।--रा.वंसावळी
- उदा.--6..सुपहां दर चंचळ वाळ सरू, घट व्यापक गोरखनाथ गरु। तुडतांण जिसौ चउवांण तपै, कर वेढ सिवाड मैं वास कपै।--पा.प्र.
रू.भे.
बियाप, बियापक, ब्यापक, वापक, विआपक, वियापक, वीआपक, वीयापक, व्याप।