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व्यापारी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.व्यापारिन्‌
1.व्यापार करने वाला, क्रय-विक्रय करने वाला, सौदागर।
  • उदा.--5..सांझ परी गई, गुदड़ी परी थइ, दीवइ जोति भई। चोहटइ भीड़ मिटी, व्यापारी नी महिमा घटी, हाटइ ताला जडइ। आप आप रै घर आया, कूंची लाया। स्त्री सोलह सिंगार सजै, गणिका जार नै भजै।--रा.सा.सं.
  • उदा.--2..ताहरां वडै व्यापारी सै व्यापार हुतौ, तिकै आया। आइनै कह्यौ, ठकुराळा, टकौ-पइसौ खरचतौ अपूठौ मत जोए। म्है खरच पूरवस्यां। अर छोटै व्यापारी रौ करज दीयौ। युं करता राजा गुनह माफ कीयौ।--बाप री सीख री बात
  • उदा.--3..पाटण सहर, तठै अजैपाळ साह व्यापारी रहै। बडौ धनेस्वरी। तिण रै देवीदास नांमौ अेका-अेक बेटौ। सौ बरसां पनरह मांहै हुहौ, तिकौ बडौ सपूत। नांमै-लेखै बिणज व्यापार मांहै बहौत खबरदार।--पलक दरियाव री बात
  • उदा.--4..व्यापारी सहू वांणिआ, जोसी वैद्यक व्यास। मांगण पणि मिळिया बहू, सहूनी पूगइ आस।--मा.कां.प्र.
2.वेश्य, बनिया
  • उदा.--1..कह्‌यौ महाजन आवै जिण नै पइसा लेइ रोटियां कर घालबौ कर। महाजन आवै ज्यांनै मेर तै ब्राह्मणी नौ घर बताय देवै। कैतलै एक कालै च्यार व्यापारी घणा कोसां रा थाका आया। मेरां नै कह्‌यौ उत्तम घर बताऔ जद ब्राह्मणी रौ घर बतायौ।--भि.द्र.
  • उदा.--2..तिम हिज जेठमलजी कह्‌यौ थै जास्यौ तौ और व्यापारी आंण वसासां पिण साधां नै काढां इसौ अन्याय म्है करां नहीं। जद बाबेचा कूंचियां लेइ आप आप रै घर गया।--भि.द्र.
3.व्यवसाय, कार्य-धन्धा या पेशा करने वाला व्यक्ति।
रू.भे.
बेपारी, बैपारी, बोपारी, ब्योपारी, ब्यौपारी, वापारी, वेपारी, वैपारी, वोपारी, वौपारी, व्योपारी, व्यौपारी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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