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व्रथ, व्रथा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.वृथा
1.निष्प्रयोजन, व्यर्थ, फिजूल।
  • उदा.--1..सुक पिक लगै सवाद, भल थोड़ौ ही भाखणौ। व्रथा करै वकवाद, भेक लवै, ज्यूं भैरिया।--महाराज बळवंतसिंघ रतलांम
  • उदा.--2..पण म्हारै औ पण छै--सगै रौ नाळेर आयौ पाछौ न मेलुं। सौ माजी, म्हारौ वचन गयां, जमवारौ व्रथा जासी। तिण सुं थै राजी हुय मनै फुरमावौ, ज्यूं म्हारौ भलौ हुवै, अर थांहरै सत तपस्या सुं माहरौ कुही न वीगड़ै।--कुंवरसी सांखला री वारता
  • उदा.--3..आळस वाळा राजवी घर रा घर में दारू पी रोटी खाय सूय रैणौ घर रौ कांम, परोपकार, वीरता, देससेवा आदि आछा कांम न करणा मैं व्रथा यूं ही वेस ऊमर गमावै है।--वीर सतसई की टीका
  • उदा.--4..मुंधा हालरा उगेर व्रथा पालणै हलाया माता, पोखैं केण कारणै जिवाया थांनै पीव। लोक लाज धारणै फिरंगी हुँता झाट लेता, जै'र खाय धणी रै बारणै देता जीव।--दलजी महड़ू
2.असत्य, झूठ। (अ.मा., ह.नां.मा.)
रू.भे.
बिरथा, ब्रथा, विरथा, व्रिथा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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