वि.
सं.वृथा
1.निष्प्रयोजन, व्यर्थ, फिजूल।
- उदा.--1..सुक पिक लगै सवाद, भल थोड़ौ ही भाखणौ। व्रथा करै वकवाद, भेक लवै, ज्यूं भैरिया।--महाराज बळवंतसिंघ रतलांम
- उदा.--2..पण म्हारै औ पण छै--सगै रौ नाळेर आयौ पाछौ न मेलुं। सौ माजी, म्हारौ वचन गयां, जमवारौ व्रथा जासी। तिण सुं थै राजी हुय मनै फुरमावौ, ज्यूं म्हारौ भलौ हुवै, अर थांहरै सत तपस्या सुं माहरौ कुही न वीगड़ै।--कुंवरसी सांखला री वारता
- उदा.--3..आळस वाळा राजवी घर रा घर में दारू पी रोटी खाय सूय रैणौ घर रौ कांम, परोपकार, वीरता, देससेवा आदि आछा कांम न करणा मैं व्रथा यूं ही वेस ऊमर गमावै है।--वीर सतसई की टीका
- उदा.--4..मुंधा हालरा उगेर व्रथा पालणै हलाया माता, पोखैं केण कारणै जिवाया थांनै पीव। लोक लाज धारणै फिरंगी हुँता झाट लेता, जै'र खाय धणी रै बारणै देता जीव।--दलजी महड़ू
2.असत्य, झूठ। (अ.मा., ह.नां.मा.)
रू.भे.
बिरथा, ब्रथा, विरथा, व्रिथा।