सं.पु.
सं.संकल्प
1.द्दढ़ निश्चय या विचार।
- उदा.--चालुक्य राज भीम आप रा बांम भुज नूं इच्छणी रा ताटंक रौ पीठ करण रौ संकल्प तजियौ।--वं.भा.
- उदा.--2..जिकी बात प्राची रा अधीस दूजा कुमार सुजासाह रा उर मै न माई। अर अनामय पूछण रौ व्याज करि पिता नूं बडा भाई समेत मारि साह होण रौ संकल्प करि दिल्ली माथै आपरी चतुरंग चमू चलाई।--वं.भा.
2.इच्छा, अभिलाषा।
- उदा.--अर कंठीरव कन्नह चालुक्य राज रै विजय रौ संकल्प वधावतौ निसंक थकौ एक महूरत लड़ियौ।--वं.भा.
3.इरादा, विचार।
- उदा.--1..अर रांमपुरै आपरौ सगपण हुवौ जिण रा विवाहण मैं दसोर रा फौजदार नूं नीड़ै जांणि केही बार संकल्प पाछौ पाड़ि तुरकां रा पेच मै कैद होण रौ डर घारियौ।--घं.भा.
- उदा.--2..पद पदम पून्य, संकल्प सून्य। निरबांण नित्य, अंतर अनित्य।--ऊ.का.
- उदा.--3..खीची कुमार नूं ओळक्खियौ जरै ही पाछौ आई कही इसडा संकट सूं बचावै जिकौ मारण रौ तौ संकल्प भी लावै नहीं।--वं.भा.
4.किसी देव पूजनादि अथवा धार्मिक कार्य के निमित्त चुल्लु में जल लेकर कोई नियत मंत्र पढ़कर दान देने या किसी द्दढ़ विचार प्राकट्य् की क्रिया। कि.प्र.--करणौ, छोडणौ, भराणौ, लेणौ।
5.संकल्प के समय पढ़ा जाने वाला मंत्र।
6.सभा-समिति में किसी विषय में विचार पूर्वक किया हुआ पक्का निश्चय, (प्रस्ताव)।
9.धर्म एवं दक्ष-पुत्री संकल्पा के संसर्ग से उत्पन्न एक पुत्र का नाम।
रू.भे.
संकप्प, संकळप। संकळ्पणो, संकळ्पबौ--देखो 'संकळपणौ, संकळपबौ' (रू.भे.)
- उदा.--पछै आख्यां रा गोख, कानां रा मोर छांटिया, तीखा कुरळा, कीया, घड़ी एक अमळ नै पीढाड़ियो। पछै सिनांन संपाड़ौ करि पाघ बांधी, तुळसीदळ पाघ मांहै मेल्यौ, काया स्त्रीनारायण प्रीत संकळ्पी।--जैतसी ऊदावत री बात