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संघार  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'संहार' (रू.भे.)
  • उदा.--1..दाखी अरज 'दुरग्ग' यां, सब खळ करां संघार। साहब मन खुसियाळ सूं, जीवै साल हजार।--रा.रू.
  • उदा.--2..भोम भार झल्लियौ, खडग झल्लै खूमांणै। कियौ सेन सघार, जांणि रूठै जमरांणै।--गु.रू.बं.
  • उदा.--3..भूपति लखप्पती भुजाळ, आदि रीति जादवां उजाळ। सूरधीर सात्रवां संघार, खागि त्यागि दूसरौ खंगार।--ल.पि.
  • उदा.--स्त्रीमहाराज ईस्वरा अवतार, कळिजुग समुद्र जाकै आगै पगार। सूरिज सरूप ओपै जग में प्रताप, मेघ अंधकार को संघारक अमाप।--रा.रू.
संघारक--देखो 'संहारक' (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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