सं.पु.
सं.
1.अग्नि, धूप आदि का तीव्र ताप या आंच। (डि.को.)
2.तीव्र मानसिंक क्लेश या पीड़ा।
- उदा.--1..कूंडै मेळा बैस करि, जपै सकतिकौ जाप। हरीया अतर ऊपजै, सांसा सोग संताप।--अनुभववांणी
- उदा.--2..सांसा सोग संताप तज्य, आपा होय अबीह। सुंन्य सहज मैं पाईया हरीया अभिनासीह।--अनुभववांणी
- उदा.--3..संभरिया संताप, वीसरिथां न वीसरइ। काळेला बिचि काप, परहर तूं फाटइ नहीं'--ढो.मा.
3.चिन्ता, दु:खा।
- उदा.--1..पोता रै जलमियां सेठ नै हरख नीं होयअणूंतौ संताप व्हियौ। इत्ता दिन तौ खावणिया दोय हा तौ कमावणिवा ई दोय हा। पण पोता रै जलमतां ई खावणिया तीन व्हैगा अर कमा--वणिया फगत दोय रा दोय।--फुलवाड़ी
- उदा.--2..ब्याव रा घर में उच्छव री ठौड़ संताप वापरग्यौ। बेटी किण नै कांई कैवती। मांय री मांय गोटीजती। उण रै आ बात समझ में नीं आवती कै जकी मां नौ महीना देह रौ रगत पाय उदर मैं पोसण कर्यौ, सोळै वरसां तांई घर मैं राखी, कांइ वळै नीं राख सकै।--फुलवाड़ी
4.शरीर में होने वाली दाह या जलन।
5.पाप आदि बुरे कृत्य करने पर मन में होने वाला अनुताप।
6.दु:ख, कष्ट।
- उदा.--1..किम आविउ कहि रे चतुर, कांई कांई संताप। माहरइ माधव बंभ विण, अवर पुरुस तै बाप।--मा.कां.प्र.
- उदा.--2..किण रै हीयै वत्ती बळत ही, इणरौ म्यांनौ खुद अंतर-जांमी सूं ईं अछांनौ हौ। हर्या-भर्या सपना बळै जणां अैड़ौ ई विकट संताप व्हिया करै।--फुलवाड़ी
- उदा.--3..व्है ठाढौ गिर गिर पड़ै, मुख तै करै विलाप। राधा-वर किरपा करौ, तौ सह मिटै संताप।--गजउद्धार
- उदा.--4..रस घर तरवर फळ तरह, सिर निज धर संताप। वसन लाज सर नीर विध, पर सुख दियण 'प्रताप'।--जैतदांन बारहठ
7.पीड़ा।
- उदा.--1..उण वगत म्हैं थारा सूं कांई कम बेचेतै ही बेटी जिण विखा री वेळा माथा में फगत थोथी सुन्याड़ घरणावै, उण सूं वत्तौ कीं दुख कै संताप नीं व्है।--फुलवाड़ी
- उदा.--2..दाळदूद पाप संताप दह, पारस संगम लोह पर। निज नांम नमौ तौ नारियण, हंस नमौ सिरताज हर।--ह.र.
- उदा.--3..पण विस्वास रा बळ आगै उण रा अखूट विखा नै ई हार मांनणी पड़ी। विस्वास रा बळ रै सांमी बापड़ा दुख, क्ळसं अर संताप रौ कांई गाढ।--फुलवाड़ी
10.रोग, बीमारी। वि.--तप्त। *(डिं.को.)
रू.भे.
संतप, संतापु, संताव।