वि.
सं.
1.ठीक या दुरुस्त करने का कार्य।
2.काट-छांट कर किसी रचना का प्रकाशन के लिए अंतिम रूप देने का कार्य।
3.तैयार करने क्रिया।
- उदा.--सूरसज्जा सोवणरौ साधन संपादन करतै बांणवै बरस रौ बय बांसै बाळियौ-र अनेक आंटा रा अवमरद आसंगिया।--वं.भा.
4.प्राप्ति, उपलब्धि।
- उदा.--1..बिनां ही परिस्रम वडाह रै सुवरण रासि सदा ही संपादन होय, यौ ही वर चंडिका सूं पाय प्रच्छन्न ही आपरै नगर गियौ।--वं.भा.
- उदा.--2..जरै बडाह भी जिण तरह प्रतिदिन अरज करतौ तिण रीति अरथी जनांनू देण काज आप रै द्वार सुबरण रासि संपादन होण रौ ही प्रसाद मांगि......।--वं.भा.
3.तैयार किया हुआ, तैयार
- उदा.--पाछैसूं वडाह भी उठै ही पूगौ जठै आकास सरस्वती कहियौ, अ'वतीरै' अधीस विक्रम विभागकर थारौ दुक्ख निरस्त कीधौ तिणा सूं अब थारै द्वारा विनांही परिस्रम सदा सुवरण रौ संचय संदादि पावसी।--वं.भा.
3.कोई पत्रिका, समाचार पत्र, पुस्तक आदि ठीक करके प्रकाशन योग्य बनाया हुआ।